Thursday, November 1, 2007

कैसे हुई चिरकीन ब्लॉग की शुरुआत.

इस ब्लॉग की शुरुआत बोधि भाई की इस पोस्ट से हुई.

आज की अजदकी पोस्ट
और उस पर ज्ञान भाई की धुरंधर टीप नें मुझे बेजोड़ शायर चिरकीन की याद दिला दी। इसलिए आज की विनय पत्रिका में फैल रही हर बू बास के लिए अजदक भाई ही एक मात्र जिम्मेदार हैं। मैं तो सिर्फ अजदक भाई की आज की पोस्ट रूपी टट्टी की आड़ से चिरकीन की शायरी बिखेर रहा हूँ। यानी चिरका कर रहा हूँ या गू कर रहा हूँ।लोग बताते हैं कि चिरकीन साहब अलीगढ़ में रहते थे और हर मुद्दे को चिरके से जोड़ने की महारत रखते थे। विद्वानों का मत है कि चिरकीन का मूल अर्थ है बिखरी हुई टट्टी। आप समझदार हैं टट्टी का अर्थ झोपड़े की टाटी नहीं करेंगे ऐसा मुझे भरोसा है। टट्टी मतलब हाजत या कहें कि गू या हगा। चिरकीन की काव्य कला अद्भुत थी। बड़े-बड़े शायर उनसे पनाह माँगते थे। अच्छे-अच्छे मुशायरों में चिरकीन ने चिरका बिखेर दिया था। इस आधार पर कहा जा सकता है कि चिरकीन प्रात काल में स्मरणीय हैं। वंदनीय है। आप सब के पास अगर इस महान शायर के युग इत्यादि के बारे में कोई ठोस जानकारी हो तो दें। चिरकीन पर रोशनी डाल कर चिरका साहित्य को बढ़ावा दें। साहित्य में फैली एक ही तरह की सड़ान्ध या बदबू को बहुबू से भरें। कभी इलाहाबादी मित्र अली अहमद फातमी ने बताया था कि चिरकीन का दीवान भी अलीगढ़ से उजागर हुआ था।चिरकीन का साहित्य सदैव चिरके पर ही केन्द्रित रहा। चिरका ही उनका आराध्य था। इसीलिएजितने भी स्वरूप हो इस मल या गू के या जितने भी रंग हों सबको चिरकीन ने अपनी शायरी में जगह दिया है। मुझे कुछ ही शेर याद आ रहे है जो आपकी खिदमत में पेश हैं। अगर कुछ इधर उधर हो तो चिरकीन भक्त और अभक्त क्षमा करेंगे।

राष्ट्रीय एकता

चिरकिन चने के खेत में चिरका जगा–जगा

रंगत सबकी एक सी , खुशबू जुदा-जुदा।

स्वागत

बाद मुद्दत के आप का मेरे घर पर आना हुआ

तेज की घुमड़न हुई और धड़ से पाखाना हुआ।

इश्क

वस्ल के वक्त महबूबा जो गू कर दे

सुखा के रख लीजे, मंजन किया कीजे।

श्रद्धा-भक्ति

चिरका परस्त बन तू ए चिरकीन

आखिर क्या रखा है दोनों जहाँ में।

अगर कोई ज्यादती हो गई हो तो सच में माफी दें। या माफ करें...

इस पोस्ट पर जब टिप्पणी आनी शुरु हुई तो वह भी मजेदार थी.


Raviratlami said...

मुआफ़ी? तभी मिलेगी जब आप ऐसी कोई 100 चिरकीन शेर यहाँ न प्रकाशित कर दें!मजेदार, एक एक खुशबूदार!

काकेश said...
चिरका का अर्थ आज ही पता चला तो चलिये हम भी कुछ 'चिरकीन-मय' हो जाते हैं.

चिरका बिखरा देख के,पंडित जी घबरांय

खाते समय ना सूझता,चिरके का उपाय

चिरका ही एक सत्य है,सुबह सुबह दिख जाय

ना दीखे तो सोच लो,पेट गरम है भाइ

चिरका करके यूँ लगे,आयी जान में जान

चिरका बिना ना तर सके,पंडित हो मलखान

अभय तिवारी said...

सुन रहे हैं कि आप के चलते आज चिरका दिवस घोषित हो गया..

ALOK PURANIK said...

अजी माफी कईसे मिलेगी जी। ना। माफी तब मिलेगी जब इसमें से स्टार कलेक्शन छाप देंगे साइट पे। आपके पास अगर दीवान है तो उसकी फोटूकापी करवा लीजिये मैं आपसे जब मिलूंगा तब ले लूंगा। भई वाह ही वाह। अमां आपसे मुलाकात इत्ती देर में क्यों हुई लाइफ में। भौत कुछ छूट गया सा लगता है।

Sanjeeva Tiwari said...

धन्‍यवाद बोधित्‍सव जी, चिरका महोदय के शेर पढाने के लिए, ऐसा भी लिखा पढा जाता है ज्ञात हुआ ।धन्‍यवाद


बोधिसत्व said...

रतलामी साहब वहाँ तक खुशबू फैल गई....बड़ी विकराल सुगंध है....अभय भाई काश ऐसा हो पाता...जो उपेक्षित हैं उनको उनका स्थान मिल पाताआलोक भाई देर नहीं हुई है.....अभी तो कितना साल खटना है हिंदी के लिए। कुछ नहीं छूटा।

Gyandutt Pandey said...

भैया हंसी दबाये नहीं दब रही। जल्दी टिप्पणी कर यह चिरकीन प्रकरण खतम करें - वर्ना दफ्तर में ही शौचालय जाने का दबाव हंसी ने बना दिया तो बड़ा अप्रिय होगा! :-)
बाल किशन said...

बोधि भाई आपका यह चिरका प्रयास अद्भुत है. काकेश जी की भी प्रस्तुति सराहनीय है. उम्मीद है ये आगे भी जारी रहेगी. ब्लॉग जगत आपका ये अनुदान कभी नही भूल पायेगा.

प्रियंकर said...
'स्कैटोलॉजिकल ह्यूमर' पारिवारिक बतकही और मौखिक/लोकसाहित्य में तो स्थान पाता रहा है, परम श्रद्धेय चिरकीन जी के साहित्य के माध्यम से आपने इसे ब्लॉगजगत में भी प्रतिष्ठित कर दिया . अब हिंदी ब्लॉगरी के इतिहास में आपका नाम पक्का .

बोधिसत्व said...
ज्ञान भाई आपका आभारी हूँ....सदा उत्साह बढ़ाने के लिएबाल किशन जी चिरका प्रयास तो हम सब का है और आज तो इसके सूत्रधार अजदक और ज्ञान जी हैप्रियंकर जी नाम क्या अमर कराना ऐसे जहाँ सब चिरका ही चिरका है...

अफ़लातून said...
वाचिक परम्परा के शायर को प्रकाशित करने पर कई तरह की गड़बड़ियाँ होंगी। पटना वि.वि. में इन पर एक शोध हुआ।शोधार्थी ने लिखा-' मियाँ चिरकिन जब कपड़े बदलते थे,इत्र के साथ मल-मूत्र मलते थे" । शोध का महत्वपूर्ण नतीजा था-"उर्दू के बेनज़ीर चमन में मियाँ चिरकिन के शेर खाद का काम करते थे।" चिरकिन इतने महान थे कि परस्पर विरोधी मत भे उनके नाम से प्रकट हुए-" हगने में क्या मजा है,चिरको अलग-अलग,रंगत जुदा जुदा है,खुशबू तो एक है "।

बोधिसत्व said...
अफलातून भाईइससे एक बात तो जाहिर है कि चिरकीन एक रा।ट्रीय शायर थे। इस आधार पर मैं अभय की बात का समर्थन करते हुए आज की तारीख को ब्लॉग जगत का चिरका दिवस घोषित करता हूँ.

काकेश said...
सुबह अभय जी के ब्लॉग पर लिखा था कि आज 'चिरका दिवस' है और आपने घोषित भी कर दिया. तो आज से एक नवम्बर 'ब्लॉग चिरका दिवस' के नाम पर मनाया जाय. इस दिन चिरका शायरी पर आधारित मुशायरे करवायें जायें. बोलो चिरकीन साहब की जै.

बोधिसत्व said...
बोलिए चिरका समाज की जयजय बाबा चिरकीन की काकेश जी पक्का रहाएक नवम्बर चिरका दिवस याद रखिएगा, ऐसा न हो कि हम सब भूल जाएँ और दूसरे लोग चिरका जी का हरण कर लें....आपकी वे पंक्तिया अच्छी बन पड़ी हैं जो चिरकानुमा हैं।हम हर साल एक सम्मान भी देंगे जिसका नाम होगी चिरकेश सम्मान। अगर कोई दिक्कत हो तो बताइएगा।

चौपटस्वामी said...
चिरकीन जी का एक ब्लॉग बनाइए . उस पर हम सभी ब्लॉगर अपने-अपने स्थान से चिरकीन जी के प्रति श्रद्धा अर्पित करने के लिए सामूहिक रूप से यथासामर्थ्य चिरका करेंगे . चिरका दिवस नहीं, चिपको की तर्ज पर चिरको दिवस ठीक रहेगा . व्याकरणाचार्य भी आपत्ति नहीं कर सकेंगे . बाकी जैसी पंचों की राय . बकिया इसमें स्थापित और वरिष्ठ चिरकंतुओं के मार्गदर्शन में सिर्फ़ चिरकन चलेगी, लेंड़ी-मींगणी-गोबर-लीद नॉट अलाउड .

Udan Tashtari said...
हमारे एक रिश्तेदार गोरखपुर में कभी चिरकी की चिरकने गा गाकर सुनाते थे. आज यादें ताजा कर दी आपने.

Aflatoon said...
उड़न तश्तरी के रिश्तेदार सुनाते थे तब जरूर ,'उड़ उड़ कर पादते होंगे' । (यह एक श्लील मुहावरा है)

तो चौपटस्वामी की इच्छा और सुझावानुसार यह ब्लॉग बना लिया गया.

आज से एक नवंबर "ब्लॉग चिरको दिवस" के रूप में मनाया जायेगा. सभी चिरकीन भक्तों से निवेदन है कि अधिक से अधिक संख्या में जुड़ कर इस "चिरको आन्दोलन" को सफल बनायें.

सभी चिरकीन भक्त टिप्पणी में ब्लॉग में शामिल होने की इच्छा बतायें आपको आमंत्रण शीघ्र ही भेजा जायेगा.

बोलो चिरका समाज की जय.

5 comments:

बोधिसत्व said...

भाई यह तो आनन्द वाली बात है. आपका यह ब्लॉग चिरके से आबाद रहे यही बदबुआ फेंक सकता हूँ।

Sagar Chand Nahar said...

हंसी भी आ रही है और मन हो रहा है कि कह दें छीऽऽऽ क्या लिखा है। क्या कोई विषय नहीं बचा था लिखने के लिये।
फिलहाल तो बोधिजी की बदबुआ को कॉपी पेस्ट क लें। :)

Sanjeet Tripathi said...

लोग आ-आ कर यहां चिरकते रहें यही कामना है!!

Praveen Agarwal said...

तहसीलदार के पाखाने में हैं ताखों के टोटे
खुड्डी पर चुतर, हाथों में लोटे।
चिरकीन जब तहसीलदार के गये तो कोयले से लिख दिया
क्योंकि वहाँ लोटा रखने की जगह नहीं थी

Khalid said...

पादे से किसी के उड़ती नही कंकड़ी देखी,
चिरकीन उड़ाय देता है पहाड़ फुस्की से।